गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

Eltyshevi - 18

अध्याय 18


 “अच्छा, तुम, तुम ये सोच भी कैसे सकते हो?!” वलेन्तीना विक्तोरोव्ना बिफ़र गई थी. “क्या मैं स्प्रिट को पतला बनाऊँगी, शराबियों को बोतलें भर-भर के दूंगी?”
“तुम्हारा क्या ख़याल है? घर कैसे बनेगा? पेट्रोल के दाम बढ़ रहे हैं, सामान...क्या हम सिर्फ मछली के साथ ब्रेड खायें?”
निकोलाय हालाँकि ज़ोर से, तीखी आवाज़ में बोल रहा था, मगर गुस्सा नहीं कर रहा था. या तो वह ख़ुद  ही पछता रहा था, कि उस आदमी की बातों में आ गया, या फिर बीबी को पटाने की कोशिश कर रहा था.
वलेन्तीना विक्तोरोव्ना बाँह पर सिर टिका कर झूलने लगी.
 “हम कितना नीचे नीचे फिसल रहे हैं, किधर जा रहे हैं?... बाज़ार-वाली अम्मा तो मैं बन ही गई हूँ, अब स्प्रिट भी...”
 “ठीक है, चलो, इन्कार कर देते हैं. इन्कार कर देंगे और यहाँ मरने के लिए लेट जाएँगे.” निकोलाय शाम की दसवीं सिगरेट पीने लगा. “मुझे तो कोई रास्ता दिखाई नहीं देता - हम ज़िन्दगी की गाड़ी को पटरी पर कैसे लाएँ, ये सब कैसे ठीक-ठाक करें.”

वह भट्टी के पास बैठ गया, सिर लटका लिया. वलेन्तीना विक्तोरोव्ना को उस पर तरस आ गया.
 “फिर क्या,” उसने गहरी साँस ली, “चलो, कोशिश कर लेते हैं. वाक़ई में, किसी न किसी तरह जीना तो पड़ेगा ही.”
 “किसी न किसी तरह नहीं, बल्कि अच्छी तरह जीना होगा. और पाँच साल बाद बूढ़े हो जाएँगे...ठीक है,” निकोलाय ने सिगरेट का टुकड़ा ऐश-ट्रे में फेंक दिया, उठकर खड़ा हो गया, “चल, अच्छी नींद के लिए पीते हैं. कुछ खाने के लिए है?”

दूसरे दिन उनके यहाँ दस-दस लीटर्स के, स्प्रिट से भरे, तीन कनस्तर, खाली बोतलों के दो बक्से, कॉर्क्स की एक बैग, दस-दस की गड्डियों में दो सौ रूबल्स लाए गए – ‘व्यापार करने के लिए’.

और काम चल पड़ा...दोपहर में तो क़रीब-क़रीब कोई नहीं आता था, मगर शाम को और रात में – एक के बाद एक लोग आते ही रहते थे. भौंक-भौंक कर दीन्गा का गला बैठ गया. शुरू में तो सिर्फ निकोलाय ही स्प्रिट का पूरा काम करता था – ख़ुद ही उसे पतला बनाता, बोतलें भरता, ख़ुद ही बाहर ले जाकर देता. वलेन्तीना विक्तोरोव्ना भौंहे चढ़ाए उसका काम देखती रहती, मगर दराज़ में कमाकर रखे गए नोटों की गड्डियाँ दिन पर दिन मोटी होती जातीं, और आख़िरकार दिमाग़ से नहीं, बल्कि कहीं दिल की गहराई से ये ख़याल आ ही गया: “सच में, क्या कोई और रास्ता है? और शरमाना कैसा – हम कोई ज़हर थोड़े ही बेच रहे हैं, साधारण पीने वाली स्प्रिट ही तो बेच रहे हैं. अगर कोई और काम होता...” और जब निकोलाय ने ‘अच्छी नींद के लिए’ रात का जाम पिया, और उठ नहीं सका, तो ख़ुद गेट के पास गई, किसी अनजान आदमी से ख़ाली बोतल और पैसे लिए, और स्प्रिट से भरी बोतल बाहर ले गई. पैसे दराज़ में रखे और अप्रत्याशित संतोष से गहरी सांस ली.

आर्तेम कभी-कभी आ जाता था, कुछ भी नहीं मांगता, किसी भी बारे में बात नहीं करता. अगर उस समय माँ-बाप खाना खा रहे होते, तो उनके साथ खाना खा लेता, अगर वो पी रहे होते तो वह भी पी लेता. बच्चे के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब में कहता: “हाँ, सब ठीक है, बड़ा हो रहा है.” घर बनाने के बारे में बात ही नहीं होती थी – वलेन्तीना विक्तोरोव्ना देख रही थी कि निकोलाय को बेटे की पहल का इंतज़ार है, मगर वो जानबूझकर कुछ नहीं कहता है. जैसे कि ये कोई समस्या ही नहीं थी.

अप्रैल के मध्य में अचानक गर्मी बहुत बढ़ गई. सूखी, बिल्कुल गर्मियों जैसी, और बाहर आँगन में जाने का दिल करने लगा. ज़मीन से घास उग आई थी, इस ख़याल से परेशानी हो रही थी कि बुआई करने में देर हो सकती है. इन सर्दियों में वलेन्तीना विक्तोरोव्ना ने डिब्बों में टमाटर और मीठी मिर्च बोए थे, और अब, रोशनी को रोकते हुए, उनके पौधे खिड़कियों की देहलीज़ पर खूब फैल गए थे - पूरा जंगल हो गया था. मगर ये बात साफ़ थी कि सर्दियाँ फिर से लौटेंगी, शायद दो-एक बार बर्फ भी गिरे. “अभी जल्दी होगा,” वलेन्तीना विक्तोरोव्ना ने अपने आप को और उन पौधों को मनाया – “बर्दाश्त करना पड़ेगा. अभी समय नहीं हुआ है...”       

इन गर्म दिनों में तात्याना आण्टी मिल गई. कुछ छोकरे उस लावारिस घर में घुस गए, जो एल्तिशेवों की कॉटेज के पास ही था – या तो वे वहाँ बैठकर सिगरेट पीना चाहते थे, या कुछ खेलना चाह रहे थे, - और तहख़ाने में उन्हें मुर्दा शरीर दिखाई दिया. फ़ौरन भागकर मैनेजर के पास गए. उसने पुलिस ऑफ़िसर को सूचित किया. शहर से खोज करने वाले नहीं आए – कहा कि वहीं पर केस निबटा दो. पुलिस ऑफ़िसर ने पंचनामा किया. उसकी राय में ये दुर्घटना थी. मगर वह अजीब नज़रों से एल्तिशेवों की ओर देख रहा था, जैसे उसे किसी बात का संदेह हो रहा हो. वलेन्तीना विक्तोरोव्ना को ख़ुद भी बड़ा अजीब लग रहा था, वह समझ नहीं पा रही थी कि बुढिया उस लावारिस घर के तहख़ाने में कैसे पहुँच गई.
 “क्या?!” पति उसकी नज़र को बर्दाश्त न कर पाया. “मुझे क्या मालूम?! हो सकता है, उसने ख़ुद ही ये फ़ैसला कर लिया होगा कि ख़ुद को भी मुक्त कर ले, और हमें भी आज़ादी दे दे.”

आण्टी की दोस्तों ने वादे के मुताबिक सारे काम पूरे किये – उसे नहलाया, साफ़ कपड़े पहनाए. ये सब किचन की मेज़ पे हुआ; वलेन्तीना विक्तोरोव्ना वहीं थी, मगर वह कोशिश कर रही थी कि आण्टी की तरफ़ न देखे, मुँह से साँस ले रही थी, हालाँकि, आश्चर्य की बात ये थी कि जिस्म के सड़ने की बदबू बिल्कुल नहीं आ रही थी. “मानो वो सर्दियों में ‘फ्रीज़’ हो गई थी...”
जिस दिन वह मिली, उसके दूसरे दिन उसे दफ़नाया गया. गाड़ी पर लकड़ी के फट्टों का ताबूत लाया गया, गाड़ीवान, गाँव का इकलौता किसान, जिसके पास घोड़ा था, छककर पिये हुए था, बिना साँस लिए घोड़े को भगा रहा था:
 “चल, तू कमीनी चीज़!...ओ-ओ! ...अ-रे, तेरी तो!...”
न जाने क्यों कब्रिस्तान चीड़ के जंगल में नहीं था, जो गाँव की उत्तर-पश्चिम सीमा पर था, बल्कि उसकी उल्टी दिशा में – पहाड़ी की तलहटी में, पहाड़ी-पीपल के मरियल पेड़ों वाली नम घाटी में था. “यहीं मुझे और निकोलाय को भी दफ़न करेंगे,” वलेन्तीना विक्तोरोव्ना ने सोचा, उसने पहाड़ी पीपल जैसे ही मरियल सलीबों और कब्रों को देखा (संगमरमर के और पत्थर के स्मारक लगभग थे ही नहीं)...और अपनी मौत के ख़याल से, इस ख़याल से कि अंतिम आरामगाह इतनी दयनीय है, वह फफक कर रो पड़ी, तात्याना आण्टी के चेहरे की ओर देखने लगी, जो चौबीस घंटे में इतना डरावना हो गया था, मानो उसे उबाल दिया गया हो, और वह हिचकियाँ लेने लगी.

आण्टी को दफ़नाने थोड़े से ही लोग आए थे – पाँच बूढ़ियाँ, कब्र खोदने वाले द्वारा किराए पर लाए गए आदमी और, मौक़े की मांग के मुताबिक, पुलिस ऑफ़िसर और मैनेजर.
ताबूत पर कीलें ठोंक दी गईं, तिरछा करके रस्सी की सहायता से गड्ढ़े में उतारा गया. “रिवाज के मुताबिक, तौलियों से बांधकर नीचे उतारना चाहिए,” वलेन्तीना विक्तोरोव्ना को याद आया, “और फिर उसके टुकड़े काटकर बांट देना चाहिए...”
एक-एक मुट्ठी मिट्टी ढक्कन पर बिखेरी, और फिर आदमियों ने फ़ावडों से मिट्टी धकेलकर फ़ौरन गड्ढे को भर दिया. टीले के किनारे पर एक भद्दी सी, ख़ुद बनाई हुई सलीब घुसा दी.
 “उस के ऊपर प्लेट बाद में आप ही लगा दीजिए,” पुलिस ऑफ़िसर ने कहा. “जिससे कि कब्र खो न जाए.”
 “हाँ-हाँ, बेशक,” निकोलाय ने अपनी आदत के विपरीत जल्दी से कहा.
इस दफ़न-विधि के बाद वलेन्तीना विक्तोरोव्ना ने अपने माँ-बाप की, छुटपन में मर चुकी बहन की कब्रें ढूँढ़ी. नहीं मिलीं.
 “कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है,” अपने आप से बोली, “घर जाना चाहिए...”
पति के साथ मिलकर मेमोरियल-भोज शुरू करने ही वाली थी – किसी और को बुलाया नहीं था – कि आर्तेम आ गया.
 “ओ-” पति हंस पड़ा, “हमेशा की तरह, बिल्कुल टाईम पे. खाने के लिए.”
आर्तेम चुपचाप मेज़ के पास बैठ गया, मगर कुछ तिरछे बैठा, नाक पर हाथ फेरता रहा.
 “ये क्या है? कुछ ख़ुशबू आ रही है...”
 “आण्टी मिल गई,” वलेन्तीना विक्तोरोव्ना ने जवाब दिया और चाकू रख दिया, जिससे सॉसेज काट रही थी, आँखों में फिर से आँसू आ गए थे. “वो...वो, ऐसा लगता है कि उस घर के तहख़ाने में गिर गई थी...उस लावारिस घर में.”      
“हाँ? तो फिर?”
 “तो फिर?” निकोलाय ने उसकी नकल की. “दफ़न कर दिया.”
आर्तेम ने, जैसे अंदाज़ लगा लिया कि यहाँ मुर्दा इन्सान पड़ा था, मेज़ से कोहनी हटा ली.
“मुझे मालूम नहीं था...”
 “तुझे कुछ मालूम भी होता है?”
 “रोद्का की तबियत कुछ ठीक नहीं है...खाँस रहा है.”
 “अच्छा?!” वलेन्तीना विक्तोरोव्ना को बातचीत के दूसरे विषय पर मुड़ जाने से ख़ुशी हुई.  “कहीं तुम लोगों ने खिड़कियाँ खोल दीं थीं? हूँ?”
 “हाँ, कुछ ऐसा ही...ऊमस बहुत है ना...”
 “आयआयआय! बस, वो ठण्ड खा गया. और बुखार? बुखार है क्या?”
”ऊहूँ. क़रीब अड़तीस (डिग्री सेल्सियस से तात्पर्य है-अनु.).”
 “तो, अस्पताल ले जाना होगा.” वलेन्तीना विक्तोरोव्ना ने पति की ओर देखा; वो अपना जाम पी रहा था. “कोल्!”
 “मैं कहीं नहीं जाऊँगा. चाभियाँ ले लो और ले जाओ.”
 “मैंने कम्पाऊण्डर को बुलाया था,” आर्तेम ने जल्दी-जल्दी कहा. “अभी उसके पास गया था, और लौटते हुए आपके पास आय हूँ...हो सकता है, फ़िलहाल कहीं ले जाने की ज़रूरत न पड़े...कुछ...” उसने चेहरे पर हाथ फेरा. “कुछ बिल्कुल...”
 “ऐ!” निकोलाय ने उसे रोका. “ठीक है. हम एक ही बात सौ बार सुन चुके हैं. अब और नहीं सुनेंगे. इससे लड़ाई-झगड़े के सिवा कुछ और हासिल नहीं होता.” वह अपने लिए नया जाम भरने लगा.
 “क्या मैं भी कुछ कह सकता हूँ?”
वलेन्तीना विक्तोरोव्ना ने अलमारी से बेटे के लिए गिलास निकाला. ‘दीवार का बचा हुआ हिस्सा बदलना पड़ेगा,’ उसने मन ही मन सोचा, ‘वर्ना गर्मियों वाले किचन में दरारें पड़ जाएँगी.’
 “आण्टी का ‘मेमोरियल-भोज’ कर रहे हैं,” ज़ोर से बोली. “बहुत बेज़ार हो गई थी...” 
सबने अपने अपने जाम पिए. कैबेज का अचार, भुना हुआ सॉसेज खाया.
 “अभी लड़कों से पता चला,” घबराते हुए कि बाप फिर से चुप बैठने को कहेगा, आर्तेम ने कहना शुरू किया, “कि, वाल्या का...मतलब, वो, भूतपूर्व छोकरा जेल से वापस लौट रहा है. वे बड़ी संजीदगी से...म्-म् ...मतलब, दोस्त थे. मगर उसे पाँच साल के लिए अन्दर बिठा दिया. कोई चोरी... मतलब, किसी भी दिन आ धमकेगा.”
वलेन्तीना विक्तोरोव्ना समझ नहीं पाई कि क्या कहे, उसने पति की ओर देखा. उसने बीबी की नज़र पकड़ ली, हँस पड़ा, कंधे उचका दिए.
 “फिर क्या, सिर्फ अच्छी बीबी चुनने के लिए मुबारकबाद दे सकता हूँ.”
 “मैं पूरी गंभीरता से कह रहा हूँ,” तड़पते हुए आर्तेम ने उसे रोका.
 “तो, करना क्या है? क्या उसे सुला देगा? मतलब, उसे मार डालेंगे और ख़ुद भी अन्दर चले जाएँगे. है ना, बेटा?” निकोलाय की आवाज़ में कड़वा व्यंग्य था. “नज़दीकियाँ बनाने से पहले ये सोच लेना चाहिए कि इसका अंजाम क्या होगा. ढूँढ ली अपने लिए बीबी, और रिश्तेदार भी. दोस्त भी. यहाँ सब के सब सिर्फ जानवर हैं...हिंस्त्र, बेवकूफ़ जानवर.”
 “चलो, बस हो गया,” वलेन्तीना विक्तोरोव्ना ने बीच-बचाव किया.
 “क्या, क्या ऐसा नहीं है? हम भी ऐसे ही बन सकते हैं. बड़ी आसानी से! जैसे दो ऊँगलियाँ...और मैंने,” निकोलाय ने बोतल उठाई, अपने जाम में उँडेली, “मैंने तो सुझाव दिया था: चल, जल्दी से बड़ा घर बनाते हैं - पक्का - फ़ेन्सिंग बनाएँगे और रहेंगे. तब संभव था – और गैरेज बेचकर पैसे भी मिले थे, और मुझमें ताक़त भी थी, समय भी था. पूरी गर्मियाँ यूँ ही गंवा दीं! नहीं, शादी जो करनी थी, पहली ही छम्मकछल्लो से. अब...तो बेटा, ज़िन्दगी तेज़ी से फिसल रही है...नीचे, नीचे. पता भी नहीं चलेगा कि कब यूर्का में बदल जाएगा, किसी पोर्च में दम तोड़ देगा.”

वलेन्तीना विक्तोरोव्ना फिर से कुछ कहना चाह रही थी, मगर रुक गई : कठोरता के बावजूद, पति के शब्दों में सच्चाई थी. हाँ, वो फिसल ही रहे थे, नीचे, और नीचे...बेटा भी जल्दी ही उन्हें पकड़ सकता है.

दीन्गा भौंकने लगी. निकोलाय चिड़चिड़ाकर कराहते हुए उठा, बाहर निकला. खाली बोतल लिए वापस लौटा, उसे अलमारी के निचले दाएँ हिस्से में घुसा दिया, और बाईं ओर से भरी हुई बोतल निकाली. फिर से बाहर चला गया.
आर्तेम अचरज भरी नज़रों से उसे देखता रहा.
 “आपने क्या,” हौले से माँ से पूछा, “क्या स्प्रिट का....शुरू कर दिया है?...”

और वलेन्तीना विक्तोरोव्ना रो पड़ी, अपनी, अपने परिवार की दुर्दशा पर. चीख जैसी फुसफुसाहट से जवाब दिया:

 “और क्या...और क्या कर सकते हैं, बेटा? क्या?!”

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें