अध्याय 7
बसंत ऋतु धीरे-धीरे,
मुश्किल से आ रही थी. कभी ऐसा लगता, जैसे वह अपने पाँव जमा रही है, धरती पर ज़िन्दा
धागे छोड़ रही है, कभी निराश होकर ग़ायब हो जाती है, बर्फ की नई लहर में दफ़न हो जाती
है.
शहर में तो बसंत का
सर्दियों से युद्ध क़रीब-क़रीब महसूस ही नहीं हुआ, सिर्फ कुछ महत्वपूर्ण पल ही देखे
गए – जैसे, छत से पानी चू रहा है, बर्फ पिघल रही है, घास रेंगने लगी है, कलियाँ
फूटने लगी हैं, और पेड़ जैसे हरी-हरी धूल से ढँक गए हों. मगर गाँव में उसे पल-पल
महसूस किया जा रहा था, उससे जुड़ी हर छोटी से छोटी सी बात भी बहुत महत्वपूर्ण थी.
वलेंतीना विक्तोरोव्ना इस बसंत ऋतु का इंतज़ार इतनी बेसब्री से कर रही थी, जितना
उसने पहले कभी, बचपन में भी, नहीं किया था.
यहाँ आकर छह महीने
हो चुके थे मगर उसकी एक भी दोस्त नहीं बनी थी. पति के भी कोई दोस्त नहीं थे.
यूर्का अक्सर आ जाता था, देहलीज़ के पास बैठ जाता, सिगरेट पीता, बताता कि यहाँ की
गर्मियाँ कैसी शानदार होती हैं, तत्परता से निकोलाय के निर्माण-कार्य की योजनाओं
से जुड़ जाता – “हम ऐसे ऐसे महल बनाएंगे!
मैं तुम्हारी मदद करूँगा, मिखालिच, तू क्यों फ़िकर करता है! च—ल...” और जाने से
पहले “तीस का नोट” उधार मांगता. कभी निकोलाय दे देता, और तब यूर्का का चेहरा खिल
उठता, वहीं बैठ कर बोतल खोलने की पेशकश करता, मगर जब पैसे नहीं मिलते तो मुँह फुला
लेता, जैसे किसी ने तय कार्यक्रम के लिए मानधन न देकर उसके साथ धोखा किया हो.
यूर्का के तेरह से
चार साल तक के छह बच्चे थे – चार लड़के और दो लड़कियाँ. फ़र्म बन्द होने के बाद वह
ख़ुद कहीं भी काम नहीं करता था, बीबी दुकान में फ़र्श धोती थी. “कैसे जीते हैं?”
वलेंतीना विक्तोरोव्ना को अक्सर ये सवाल सताता था, और वह हिसाब लगाने लगती: बीबी
को हद से हद डेढ़ हज़ार रूबल्स मिलते होंगे, ऊपर से बच्चों के दी जाने वाली धनराशि
(सत्तर रूबल्स प्रतिमाह), हो सकता है कि रिश्तेदार कुछ मदद करते होंगे, हो सकता है
कि, मुश्किल से, यूर्का भी कुछ इंतज़ाम करता होगा, जिस पर कम ही विश्वास होता है.
शरद ऋतु में ग्राहकों को कितने का आलू बेचते होंगे. चलो, मान लो अगर तीन हज़ार का
भी बेचा (तीन कहाँ से होंगे – कम ही होंगे), इस फ़ौज को खिलाना, उनके कपड़ों का
इंतज़ाम... कैसे करते होंगे?
यूर्का के बच्चों
को कई बार देखा था. बड़ी तेरह साल की लीदा, अपनी उमर के हिसाब से ठीक-ठाक बढ़ रही
थी, शरीर एकदम सही अनुपात में था, मगर दूसरा, ग्यारह साल का पाव्लिक, ऊँचाई में,
कद-काठी में आठ-नौ साल के बच्चे जैसा था; बाकी के बच्चे भी कम ऊँचाई के,
दुबले-पतले, भावहीन चेहरे... “इनका क्या होगा?”
वलेंतीना
विक्तोरोव्ना उन लोगों से क़रीब-क़रीब मिलती ही नहीं थी, जिन्हें वह शिक्षा के लिए
प्रिपेरेटरी इन्स्टीट्यूट जाने से पहले जानती थी. बात भी सही है – क़रीब चालीस साल
बीत चुके हैं. मगर फिर भी मन नहीं करता था: ऐसा लगता कि वे सब किसी भयानक प्लेग या
हैजे से मर गए हैं, और वे जो ज़िन्दा बचे हैं, ऐसे लगते थे जैसे बीमार चल रहे हों
या अभी-अभी बीमारी से उठे हों – मरियल, निर्जीवता की हद तक उदासीन. वलेंतीना
विक्तोरोव्ना अपनी मुसीबतों के बारे में बताना और ये कहना शुरू करती ही थी कि
बुढ़ापे में सब कुछ फिर नए सिरे से शुरू करना होगा, मगर वे यंत्रवत् सिर हिलाते,
उनींदेपन से आह भरते और उसकी आँखों से परे, कहीं दूर, अनंत में देखते. सड़क पर अपनी
धीमी हलचल को जारी रखते हुए, बिदा भी वैसे ही होते, जैसे मिलते थे.
सिर्फ एलेना खारिना से
ही वलेंतीना विक्तोरोव्ना की थोड़ी बहुत पटती थी – ये वो औरत थी जो सर्दियों के
मध्य में उनके घर आई थी, जिसने मदद की पेशकश की थी, हालाँकि उसके परिवार को भी
ज़रूरत थी – वे उनके सामान वाले कन्टेनर का इंतज़ार कर रहे थे, मगर वो पहुँच ही नहीं
रहा था. वलेंतीना विक्तोरोव्ना ने पति से सलाह-मशविरा करके खारिनों से पहले ही,
बिना देखे, पेट्रोल से चलने वाली चेन-आरी ख़रीद ली. ढाई हज़ार रूबल्स में (इतना पैसा
घर में निकल आया) – मार्केट-रेट से क़रीब डेढ हज़ार रूबल्स कम में.
”बस-बस लाते ही
होंगे,” पैसों को जेब में रखते हुए एलेना ने यक़ीन दिलाया. “बस-बस... वहाँ
ट्रांसपोर्ट की प्रॉब्लम आ गई थी, मगर अब, ख़बर मिल गई है कि वे चल पड़े हैं. और आरी
ख़ूबसूरत है – ‘तायगा’ !
कार को भी ठीक करवाना
पड़ा, हालाँकि इसमें पैसे लगे. अप्रैल के आरंभ में उसे यहाँ लाया गया. फ़िलहाल गैरेज
को बेचने के बारे में कोई फ़ैसला नहीं किया – चाहे जैसा भी हो, मगर शहर में स्थित
किसी अचल सम्पत्ति को खोने का डर था. अंतिम फ़ैसले की घड़ी टालते रहे.
निकोलाय घर बनाने
के लिए ज़मीन का टुकड़ा ढूँढ़ने लगा. मगर, ये इतना आसान नहीं था – हालाँकि तान्या
आण्टी की सम्पत्ति सत्रह एकड़ में फैली थी, आँगन छोटा सा ही था, उसमें चारों ओर
निर्मित ढाँचे थे: खलिहान और कोयले की कोठरी, स्नानगृह, जानवरों को रखने की जगह,
गर्मियों वाला किचन. इनके पीछे - शौचालय, एक सर्विस-रूम, जहाँ गर्मियों में
मुर्गियाँ रहती थीं. ये सारे ढाँचे एक दूसरे के बहुत पास-पास थे. इसकी वजह, बेशक,
ये थी कि सर्दियों में, बर्फ में, कॉटेज से भागकर एक सेकण्ड में स्नानगृह या कोयले
की कोठरी तक पहुँचा जा सके. तो फिर उसमें घर और गैरेज को कैसे घुसेड़ा जाए? ऊपर से
“मस्क्विच” भी आ गई थी, उसने लगभग पूरा आँगन ही घेर लिया था.
निकोलाय ने आण्टी
के सामने ही कहा कि, लगता है, खलिहान और मवेशियों का बाड़ा तोड़ना पड़ेगा, उसकी राय
पूछी. आण्टी ने अपना पतला हाथ उठाकर नीचे गिरा दिया:
“ठीक है, तोड़ो, तोड़ो. मुझे अब करना ही क्या
है...बस किसी तरह ज़िन्दा रहना है...मुर्गियों के बारे में अफ़सोस होता है –
सर्दियों में खुले आसमान के नीचे वे कैसे रहेंगी...”
“नया दड़बा बना
लेंगे,” मुस्कुराहट से, मगर काफ़ी दुख से निकोलाय ने कहा.
आण्टी ने निराशा से
आह भरी.
वलेंतीना
विक्तोरोव्ना ने महसूस किया कि इसके बाद पति के मन में किसी चीज़ में परिवर्तन की
ललक ही जाती रही. वह काफ़ी देर तक आँगन में लकड़ी के सड़े हुए ठूँठ पर बैठा रहता,
अक्सर सिगरेट पीता रहता. लगातार एक के बाद दूसरी. नाक-भौंह चढ़ाए काली, टेढ़ी कॉटेज
की ओर देखता रहता, उसी तरह के लोभान की गंध छोड़ते अन्य ढाँचों की ओर देखता रहता.
उसकी आँखों में लिखा था: “क्या करूँ? मैं यहाँ का मालिक नहीं हूँ. मैं अपनी मनमानी
कैसे कर सकता हूँ?”
एक बार यूर्का एक
आदमी को अपने साथ लाया. ये आदमी ज़्यादा ऊँचा नहीं था, बढ़िया कपड़े पहने, चमड़े की
कैप लगाए, बगल में फाईल दबाए था. जैसे ही वलेंतीना विक्तोरोव्ना ने खिड़की से
उन्हें गेट की ओर आते देखा, वह घबरा गई – दिल में दर्द होने लगा, शायद डेनिस के
बारे में कोई भयानक ख़बर लाए हैं. या तो वो भाग गया है, या फिर इससे भी ज़्यादा
बुरी...आंगन में भागना ही चाहती थी, मगर तभी उसने अपने आप को रोक लिया, बाल ठीक
किए, स्वेटर डाला, धीरे से चल पड़ी. फिर रुकी, उनके अन्दर आने तक इंतज़ार करने का
फ़ैसला किया.
वह आदमी अन्दर आ ही
नहीं रहा था, उसने दरवाज़े को धकेलकर बाहर देखा... पति ध्यान से बढ़िया कपड़ों वाले
की बात सुन रहा था, जो धीमी आवाज़ में, मगर जोश में कुछ कह रहा था. बगल में ही
यूर्का की चुलबुलाहट जारी थी, जो कभी निकोलाय की आँखों में देखता, कभी उस आदमी की
जिसे अपने साथ लाया था.
“क्या बात है?”
शांत रहने की कोशिश करते हुए वलेंतीना विक्तोरोव्ना ने पूछा.
“वो...” निकोलाय ने बदहवासी में होंठ टेढ़े किए.
“हमारे लिए प्रस्ताव लाए हैं...”
“नमस्ते!” वलेंतीना विक्तोरोव्ना की ओर देखकर वह
आदमी बेहद ख़ुश हो गया, उसने अभिवादन किया और फ़ौरन निकोलाय की ओर मुड़ा: “स्थानीय
लोगों के लिए ये बेहतर है – स्प्रिट बढ़िया क्वालिटी की है, पीने लायक...
“बात क्या है?”
वलेंतीना विक्तोरोव्ना ने उसकी बात काटते हुए पूछा. वह फिर से उत्तेजित हो गई, मगर
अब किसी और वजह से. “घर के अन्दर चलें?”
वह आदमी राज़ी हो
गया:
“हाँ, ज़रूर.”
“नहीं, कोई ज़रूरत नहीं है,” यूर्का ने रोका, “
वहाँ, वो, दादी है. फिर से भुनभुनाने लगेगी.”
“हुम्... तो मैं ये कह रहा था...” अब वह आदमी
वलेंतीना विक्तोरोव्ना से ज़्यादा मुख़ातिब हो रहा था. “यहाँ, ज़ाखोल्मोवो में, जैसा
कि आप, शायद, जानती हों – स्प्रिट बनाने का कारखाना है. स्प्रिट-कारखाना. स्प्रिट
पीने लायक है, वोद्का के लिए उपयुक्त है...”
“हाँ, हमने पीकर देखा है,” निकोलाय ने फिर से
होंठ टेढ़े किए, “अभी तक जले हुए रबड का स्वाद मुँह में है.”
“क्या?” एक पल के
लिए वह आदमी तैश खा गया. “आ-आ, तो वो,” उसने मुस्कुराते हुए होंठ फैला लिए, “वो
आपने चोरी की पी ली थी. कुछ लोग थे ऐसे, जो चुराई हुई स्प्रिट बेचते थे. हमने उनका
इंतज़ाम कर दिया है.”
“ऊहूँ,” यूर्का ने अप्रसन्नता से पुष्टि की.
“ अब हम इस इलाके में अपना नेटवर्क बना रहे हैं.
सब कुछ शरीफ़ाना ढंग से होना चाहिए...बारह डिग्री से ऊपर के अल्कोहोल की बिक्री का
लाईसेन्स दुकान को फिर से नहीं मिला, मतलब, लोग वह ज़हर ही पीते रहेंगे. जैसे क़ैदी
- ज़ेलेन्का पीते हैं...”
“तो आप क्या चाहते हैं?” वही बात बार-बार सुनकर
वलेंतीना विक्तोरोव्ना थक गई, उसने हँसते हुए पति की ओर सवालिया नज़रों से देखा.
“ स्प्रिट का बिज़नेस करने का सुझाव देते हैं,”
उसने कहा.
“प्रैक्टिकली - हाँ,” अच्छे कपड़े पहने हुए आदमी
ने पुष्टि की और यक़ीन दिलाने वाले अंदाज़ में जल्दी-जल्दी बताने लगा; ऐसा फ़ैशनेबल
मॉल्स में ख़ास तौर से मौजूद लोग बताते हैं. – “हर चीज़ केन्द्रीकृत है, ‘ऊपर’ से
इजाज़त मिली है. आवश्यकता के अनुसार मैं तीस-तीस लिटर्स पीने योग्य स्प्रिट लाता
रहूँगा, कन्टेनर में. आप उसको लोगों में बाँटते जाईये... मैं स्प्रिटोमीटर दूँगा.
पम्प से बहुत ऊँची किस्म का पानी मिलता है, उसे उबालने की भी ज़रूरत नहीं है. आधे
लिटर की कीमत होगी – तीस रूबल्स, आप अपने हिसाब से इसे बढ़ा भी सकते हैं – दस,
पन्द्रह रूबल्स. हमारा अनुभव बताता है कि पैंतलीस रूबल्स तक की कीमत लोगों को ठीक
लगती है. ले लेते हैं...”
वलेंतीना
विक्तोरोव्ना को उस आदमी के प्रस्ताव से धक्का नहीं लगा – आजकल सभी हर संभव तरीक़े
से पैसा कमाते हैं, - बल्कि उसे इस बात से आघात पहुँचा कि निकोलाय क्यों उसकी बात
काट नहीं रहा है, उसे आँगन से भगा नहीं रहा है. उल्टे, मुस्कुराना छोड़कर ध्यान से
उसकी बात सुन रहा है, दिमाग़ में कोई हिसाब लगा रहा है...उसे ख़ुद ही बीच में कूदना
पड़ा:
“सु...सुनिये! आप शायद नहीं जानते कि किसके पास
आए हैं. कहीं आप ये तो नहीं सोच रहे हैं कि ऐसी छोटी सी, दयनीय झोंपड़ी में रहते
हैं, तो उनके पास जाकर ऐसी बात कह सकते हैं, मना नहीं करेंगे? मेरे पति ने तीस साल
तक पुलिस की नौकरी की है. अब रिटायर हो चुका है...मैं – लाईब्रेरियन थी...आपको शरम
नहीं आती! कोल्या, इसे बाहर छोड़ आओ!”
“ “रुकिए-रुकिए,” समझौते के सुर में उस आदमी ने
हाथ उठा दिए, “ मैं आपको कोई आपराधिक काम करने के लिए तो नहीं कह रहा हूँ. बल्कि
बात बिल्कुल उल्टी है. प्लीज़, समझने की कोशिश कीजिए, लोग हर तरह का ज़हर पीकर मर
रहे हैं. मगर यहाँ – पीने योग्य स्प्रिट, कारखाने में बना हुआ. कह सकते हैं कि ये
तो फ़ायदेमन्द काम है...”
“ठीक है, माननीय महोदय, वाक़ई में,” आख़िर में
निकोलाय की आवाज़ फूटी. “हम किसी तरह, जैसे पहले...अलबिदा?”
उस आदमी ने कंधे
उचका दिए:
“अफ़सोस की बात है. मैं ख़ास तौर से आपके पास
इसलिए आया था कि आपके बारे में लोगों की अच्छी राय है. मुझे आपसे समझदारी की
उम्मीद थी. तो फिर क्या, अलबिदा.” और वह गेट की तरफ़ बढ़ा.
यूर्का गहरी साँस
लेकर उसके पीछे हो लिया. उसे पकड़ कर उसके कान में इतनी ज़ोर से फुसफुसाया कि
वलेंतीना विक्तोरोव्ना ने सुन लिया:
“मैं और किसी को दिखाऊँगा. वो लोग बिल्कुल तैयार
हो जाएँगे.”
“क्या दूर है?”
“नहीं, सड़क के उस ओर...”
उनके जाने के काफ़ी
देर बाद तक भी एल्तिशेवों की नाराज़गी कम नहीं हुई – वलेंतीना विक्तोरोव्ना बेहद
नाराज़ थी, निकोलाय मिखाइलोविच कुछ संयमित था. मगर इस नाराज़गी में अफ़सोस का पुट भी
था – अफ़सोस इस बात का कि वे ज़्यादातर लोगों की तरह स्प्रिट का बिज़नेस नहीं कर सकते
हैं, और ये बिज़नेस तो फ़ायदेमन्द है, इस अर्ध-निर्धनता से उन्हें उबारने में सक्षम.
कुछ ही दिनों बाद
आर्तेम ने आश्चर्य का धक्का दिया. नाश्ते के समय, काफ़ी मशक्कत करते हुए, कभी फोर्क
उठाता, कभी वापस रख देता, अपने उदास-परेशान अवतार से भूख ख़त्म करते हुए, आख़िर में
बोला:
“मैं, शायद, शादी करने वाला हूँ.”
“आँ?...”
“वो, ऐसा हो गया...शादी करना पड़ेगी.”
“क्या?!” मगर, अपने कानों पर यक़ीन न करते हुए,
ख़ौफ़ से, वलेंतीना विक्तोरोव्ना जैसे इसके लिए तैयार थी. न सिर्फ तैयार थी, बल्कि
वह ख़ुश भी हुई, और दिमाग़ में एक स्कीम तैर गई: लड़की से मिला, शहर की लड़की से, -
यहाँ दादी के पास आई है, - शादी करेंगे, उसके साथ क्वार्टर में जाएगा, अकल ठिकाने आ जाएगी, कुछ काम धाम ढूँढेगा, हो
सकता है कि इन्स्टीट्यूट में भी दाख़ला ले ले, और सब ठीक हो जाएगा.
“...नोटिस दे दिया
है...”
“अच्छा, और किससे शादी कर रहा है?” निकोलाय ख़ुश
हो गया, मगर अच्छी तरह ख़ुश नहीं हुआ.”
“वो... वो, यहीं, लड़की से पहचान हुई. सर्दियों
में...”
“ओह, तो उसके साथ तू ग़ायब रहता था?”
“हाँ.”
“हुम्, दिलचस्प बात है! शादी कर रहा हूँ...”
“मगर वो है कौन?” शांत रहने की कोशिश करते हुए
वलेंतीना ने पूछा. “क्या यहीं की है?’
“हाँ...”
“बोल भी, अब बता तो सही. कौन है वो? ये अचानक
कैसे?”
“ओह, उसका नाम भी – वलेंतीना है,” आर्तेम ने
जल्दी से माँ की ओर देखा. “माँ-बाप के साथ रहती है...वहाँ, तालाब के
पीछे...सत्ताईस साल की है.”
“मतलब, तुझसे बड़ी है?”
“हाँ, थोड़ी सी...”
“और, माँ-बाप कौन हैं? फ़ैमिली कैसी है? बता!” निकोलाय
अपना आपा खोने लगा, वलेंतीना विक्तोरोव्ना मेज़ के नीचे पैर से उसे धक्का दे रही थी.
“ठीक है, धक्का मत मार!”
“माँ के बारे में - नहीं जानता,” आर्तेम पुटपुटाते
हुए आगे बोला, “ और बाप – क्लब में अकार्डियन बजाता था...पहले...गिओर्गी...उसके बाप
का नाम मालूम नहीं...भूल गया...उपनाम है त्यापोव.”
“ये तू गोश्का-अकार्डियनिस्ट की बेटी के बारे में
तो नहीं कह रहा है?” तात्याना आण्टी जैसे जाग
गई.
“हाँ, शायद...”
“ओ-ओय, चुना भी तो किसको.”
“क्या बात है?” वलेंतीना विक्तोरोव्ना उसकी ओर मुड़ी.
“क्या कह रही हो, आण्टी?”
“वो-ओ,” उसने अपने आशाहीनता वाले अंदाज़ से हाथ हिलाया,
“ज़ुबान नहीं खुल रही...”
“हाँ, तो” आर्तेम ने उसकी बात काटी, “थोड़ी बहुत अफ़वाहें
...”
“ख़ामोश...!” निकोलाय ने मेज़ पर मुक्का मारते हुए
कहा, “लब्ज़ों के ऐसे तीर नहीं छोड़ा करते – शादी कर रहा हूँ. तुम्हारा, चाहे कुछ भी
चल रहा हो, मगर माँ-बाप को पता होना चाहिए. समझ गये? तूने अब तक हमको उससे क्यों नहीं
मिलवाया? उसके माँ-बाप से? पाँच महीने तक, कहीं भी, कुछ भी, और अब – शादी कर रहा हूँ.”
“मगर, हमारी पहचान हुई...”
“मगर-मगर मत कर! मज़ेदार बात है: चले, और एकदम असलियत
बता दी. भुगतते रहें अब, माँ-बाप! बड़ा होशियार निकला.”
वलेंतीना विक्तोरोव्ना
ने उसे शांत करने की कोशिश की:
“ठहरो, चीख़ो मत, प्लीज़. मामले को सुलझाना तो पड़ेगा,
पता लगाना पड़ेगा...”
“अब और क्या पता लगाना बाकी है?! देर हो गई है पता
लगाने के लिए. शादी कर रहा है वो, देख रही हो ना. और उसे इससे कोई मतलब नहीं कि फ़िलहाल
हमारे पास एक भी पैसा नहीं है, कि हम सूटकेसों में जी रहे हैं. नहीं, ठीक ऐसे ही समय
पे शादी के लिए दरख़्वास्त देनी है...”
निकोलाय मेज़ से उठ गया,
भट्टी से सिगरेट ली, बाहर निकल गया. दरवाज़ा धड़ाम से बन्द कर दिया.
आर्तेम बैठा रहा, आहत
नज़रों से इधर-उधर देखते हुए, सिर को कन्धों के बीच झुका लिया...
वलेंतीना विक्तोरोव्ना
किन्हीं शब्दों को ढूँढ़ रही थी, मगर ये वो शब्द नहीं थे, दिमाग़ में जो कुछ भी आ रहा
था, वो, ऐसा लग रहा था कि नुक्सान ही ज़्यादा पहुँचायेगा, हालात को बदतर बना देगा.
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